रंगमंच के सहारे बहुजन समाज को संगठित करने की होगी कोशिश
असबाबे हिन्दुस्तान
प्रयागराज, निजी समाचार। प्रबुद्ध फाउंडेशन और देवपती मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में बहुजन समाज के बच्चों के सृजनात्मक कलात्मक और व्यक्तित्व विकास के लिये एक इकत्तीस दिवसीय प्रस्तुतिपरक बहुजन रंग कार्यशाला का आयोजन ग्लास फैक्ट्री स्थित डा. भीमराव अम्बेडकर बुद्ध विहार पंतरवा के सभाकक्ष में बहुजन समाज पार्टी के पूर्व मण्डल सेक्टर प्रभारी उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रंग निर्देशक रामबृज गौतम के दिशा निर्देशन में चलाई जा रही है।

कार्यशाला को सम्बोधित करते हुये सीएमपी डिग्री कालेज हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. दीनानाथ ने बताया कि रंगमंच का मानव जीवन में बहुत बड़ा स्थान है। इसके माध्यम से ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ी गई। सोती हुई अशिक्षित भारतीय कौम के सभी वर्गों को पहली बार हिंदी नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने नाटकों के मंचन द्वारा ही राष्ट्रीय चेतना का भाव भरने का काम किया। स्वामी अछूतानंद ने भी अपने साहित्य में नाटक और रंगमंच को विशेष स्थान दिया जिसके माध्यम से उन्होंने भारत की शोषित दलित आजीवक जनता को आत्महीनता से आत्मगौरव की ओर ले गए। हिन्दी द्विज रंगमंच के क्षेत्र में आज भले ही अवसान दिखाई देता हो किंतु हिंदी दलित रंगमंच आज भी अपनी आजीवक कौम को जगाने का काम कर रहा है। रंगकर्मी और रंग निर्देशक रामबृज गौतम पिछले लगभग 20 वर्षों से दलित साहित्यकारों के नाटकों, कहानियों और कविताओं को अपने रंगमंच पर स्थान देते आ रहे हैं। दावा व प्रबुद्ध फाउंडेशन नमक संगठन के माध्यम से भारतीय आजीवक संस्कृति की रक्षा , सुरक्षा और प्रचार प्रसार करने का अत्युत्तम प्रयास किया जा रहा है। नाटक एक दुधारी तलवार है जिसमे शिक्षित अशिक्षित दोनो प्रकार की जनता लाभान्वित होती है। दलित आजीवक जनता को आज भी अशिक्षित है उसके लिए अपनी गौरवशाली संस्कृति को जानने, समझने और आत्मसात कर व्यावहारिक जीवन में उतारने का एक सशक्त माध्यम है। मुझे याद है बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहेब ने भी रंगमंच के सहारे ही दलित आजीवक की सोती हुई कौम को जगाने का काम किया था। ऐतिहासिक और पौराणिक नाटकों की कथावस्तु के माध्यम से निर्देशक रामबृज गौतम दलित महानायकों के प्रति भरे गए नकारात्मक भाव को दूर कर सकारात्मकता से सराबोर कर वास्तविक स्थिति से जनता को परिचित कराते हैं। अंधविश्वास और कुरीतियों को दूर कर वैज्ञानिक सोच का प्रसार प्रचार करते हैं। आज के समय में जहां साहित्यकारों की कलम गोदी मीडिया की तरह होती जा रही है वहीं रामबृज गौतम की लेखनी दलित साहित्य और संस्कृति के उत्थान की ओर अग्रसर दिखाई देती है। कार्यशाला में राजू राव, शशि सिद्धार्थ, कृष्ण कुमार, त्रिलोकीनाथ, साहिल, रजत, आंचल, रिया, सुषमा, करीना, पायल, शालू , रामलाल गौतम, हीरालाल बौद्ध, हिमान्शु जैसवार आदि उपस्थित रहे।
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