मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

डा. अम्बेडकर केवल ज्ञान के ही नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक आन्दोलन के पुरोधा थेः रामबृज गौतम

असबाबे हिन्दुस्तान

प्रयागराज : निजी समाचार, प्रबुद्ध फाउंडेशन और देवपती मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में शहर पश्चिमी के ग्लास फैक्ट्री स्थित डा. भीमराव अम्बेडकर बुद्ध बिहार पंतरवा में चलाई जा रही एक इकतीस दिवसीय प्रस्तुतिपरक बहुजन नाट्य कार्यशाला को बहुजन समाज पार्टी के पूर्व मण्डल सेक्टर प्रभारी उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रामबृज गौतम ने ज्ञान के प्रतीक राष्ट्रनायक बोधिसत्व डा. बाबासाहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि अम्बेडकर का मानना था कि जीवन की तरह विचार भी नश्वर है। यदि विचारों का प्रचार-प्रसार नहीं होगा तो वह भी ठीक उसी तरह नष्ट हो जाएंगे जिस तरह बिना उचित देखरेख के पेड़-पौधे सूख जाते हैं। यह विचार उस महान मनीषी के है जिसे संसार ने तरह-तरह की उपाधियों से विभूषित किया किसी ने उन्हें विश्वरत्न की उपाधि दी तो किसी ने बोधिसत्व की। राष्ट्रनायक बहुजनों के मुक्तिदाता परम पूज्य डा. बाबासाहेब भीमराव रामजी आम्बेडकर केवल ज्ञान के प्रतीक ही नहीं बल्कि वह भारतीय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आंदोलन के ऐसे पुरोधा है।


जिनका संपूर्ण जीवन दर्शन भारतवर्ष को एक राष्ट्र बनाने के लिये समर्पित रहा। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की सामाजिक स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। बाबासाहेब ने विभिन्न देशों के संविधानों के अध्ययन के उपरांत भारतीय संविधान का निर्माण किया जिसे आज भी विश्व में सर्वपरिता हासिल है क्योंकि भारतीय संविधान में विश्व के श्रेष्ठतम संविधानों के गुण समाहित है। संविधान की सीमाओं में रहकर आज हम सभी अपना अपना विकास कर रहे है। इसीलिए हम सभी को भारतीय संविधान का आदर करते हुए उसका संरक्षण करना चाहिए। गौतम ने अफसोस व्यक्त करते हुये आगे कहा कि बाबासाहेब का दर्शन इतना स्पष्ट होने के बावजूद भी भारतवर्ष में उन्हें वह सम्मान नहीं प्राप्त हुआ जिसके वह वास्तविक हकदार थे और उसका मूल कारण यह था कि उन्होंने एक ऐसे समाज में जन्म लिया जिस समाज को जन्म से ही नीच और अछूत माना जाता था इसलिए बाबासाहेब ने 13 अक्टूबर 1935 को नासिक के एवला मैदान में सिंह गर्जना करते हुए कहा था कि यद्यपि हिंदू धर्म में जन्म लेना मेरे बस की बात नहीं थी परंतु मैं एक हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं यह मेरे बस में है और इसके ठीक 21 वर्ष बाद अपने लाखो अनुयायियों के साथ उन्होंने भारतवर्ष में विलुप्तप्राय मानवतावादी बौद्ध धम्म स्वीकार कर अपनी इस भीम गर्जना को मूर्त रूप प्रदान किया। 6 दिसंबर 1956 को बाबासाहेब अपने करोड़ों अनुयायियों को विषम परिस्थितियों में रोता लिखता छोड़ कर परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये। कार्यशाला में त्रिलोकी नाथ, सौरभ कुमार, शशि सिद्धार्थ, लोकनाथ, साहिल, रजत, राजू राव, आँचल, रिया, पायल, शालू, करीना, सुषमा आदि प्रतिभागी बच्चे उपस्थित रहे।

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