असबाबे हिन्दुस्तान
प्रयागराज, : निजी समाचार । डा. अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा), प्रबुद्ध फाउंडेशन, भारतीय बौद्ध महासभा के साथ साथ जनपद के विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अल्लापुर स्थित मलिन बस्ती हैजा अस्पताल में एक संयुक्त बैठक कर वीरांगना झलकारी बाई का जन्म दिन मनाया तथा उनके आदम साहस की भूरि भूरि प्रशंसा प्रतिनिधियों ने की तथा वीरांगना की शहादत को नमन किया। समाजसेवी बसपा नेता मौजीलाल गौतम ने बताया कि झलकारी बाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना ‘दुर्गादल ‘की सेनापति थी। उनकी अदम साहस के सामने ब्रिटिश शासन के सैन्य अधिकारी बहुत घबराते थे। उन्होंने कई बार अंग्रेजों के आक्रमण को अपनी कुशल निडरता व बहादुरी से विफल किया। झलकारी का जन्म 22 नवम्बर 1830 में झांसी के पास भोजला गांव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोबा सिंह और माता का नाम जमुनाबाई था। बचपन में ही माँ का देहांत हो गया था । पिता सदोबा सिंह ने अपने संरक्षण में झलकारी बाई को युद्ध कला का प्रशिक्षण दिलाया। समाजसेवी बसपा नेता जीडी गौतम ने बताया कि झलकारी बाई बचपन से ही उनके बहादुरी के कई किस्से मिलते है । एक बार गाँव में तेंदुआ घुस आया था।

झलकारीबाई ने अपनी कुल्हाड़ी से उसको मार कर गाँव वालों को बचाया। उनका विवाह झाँसी के वीर सैनिक पूरन कोरी के साथ हुआ। झलकारी बाई की वीरता और साहस देख कर रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें अपनी महिला सेना में रख लिया। उन्हें युद्ध कला का पूर्ण प्रशिक्षण दिया। उनकी शक्ल रानी लक्ष्मीबाई से मिलती -जुलती थी । 1858 में अंग्रेज़ो ने झांसी के किले को चारों ओर से घेर लिया। झलकारी बाई ने रानी को सलाह दी कि वे दूसरे रास्ते से किले के बाहर निकल जाये क्योकि देश के लिए रानी का बचना बहुत जरूरी है । रानी लक्ष्मीबाई झलकारी बाई के सुझाव को मानते हुये किले के बाहर निकल गयीं। ऐसे में झलकारी बाई रानी की वेशभूषा पहन कर अंग्रेजो से युद्ध करती रही। अंग्रेज झलकारी बाई को ही रानी लक्ष्मीबाई समझ कर युद्ध करते रहे। इसी युद्ध में उनका पति शहीद हो गया। झलकारी बाई ने हयूम ऱोज के समक्ष समर्पण कर दिया। उनसे फाँसी की सजा की माँग की। हयूम ऱोज उसकी साहस और वीरता देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसने कहा कि अगर एक प्रतिशत भी ऐसी महिलाये यदि भारत में होंगी तो बहुत जल्द ही हमे यह देश छोड़ना पड़ेगा। इंजीनियर माता प्रसाद ने बताया कि ’वीरांगना झलकारी बाई ने देश की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। बुंदेलखंड की लोकगाथाओं में झलकारी बाई की वीरता के अनेक गीत मिलते है। 22 जुलाई 2001 में भारत सरकार ने झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है। आगरा में लाल किला और ताजमहल के रास्ते पर वीरांगना झलकारी बाई की प्रतिमा स्थापित है। लखनऊ में इनके नाम का चिकित्सालय भी है । कवि मैथली शरण ने झलकारी देवी को अपने शब्दों में सही रेखांकित किया। झलकारीबाई को हरिमोहन, रामनारायण, आदित्य कुमार, हिमांशु जैसवार, गुड्डू, संजय कुमार, ओमप्रकाश, सचिन लाल, रोशन लाल आदि ने उन्हें याद किया।किशोर वार्ष्णेय ) के नाते कवरेज का आग्रह ।
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