मंगलवार, 10 नवंबर 2020

तुम्हारे बिन जीना सीख लिया,

तुम्हारे बिन जीना सीख लिया,   

      तुम्हारे बिना जीना सीख लिया 

हाँ सपने पिरोना भी सीख लिया, 

हाँ यह सही है, मैं सपनों में जीती हूँ,

सपने बिछा कर उस पर ही सोती हूँ,

अम्बर से तारे ला कर, ढक कर,

 मीठी नींद में सोती हूँ................

तुम्हारे...................

अब मैं सोचती नहीं,

 जो मन को भाता है,

वही पिरोना सीख लिया ,

अब काली रातों में डरती नही,

पायल बजाती नहीं, 

चूड़ियां खनकाती नहीं,

फकीरी लिबास पहनना सीख लिया,

तुम्हारे.....................

सुनो एक बात कहती हूँ तुमसे,

मैंने जिद मैं मचलना छोड़ दिया,

बादलों पर चलती हूँ 

रूहानियत में जीना सीख लिया,

तुमको शिकायत है हमसे,

यह सोचना समझना सब छोड़ दिया,

अब बारी है तुम्हारे सोचने समझने की,

बहुत कुछ नया तराना गाने का 

जब खुशियाँ बटोरना तो याद कर लेना,

हमको भी बहुत कुछ खोया है,

तुमको पाने में....................

तुम्हारे.......................

फिर वही बातें, मुलाकातें नहीं करूगीं,

अपनी आन और शान का  सौदा नही करूंगी

लेकिन जब दिल करेगा,

 तो कभी कभी मिलूगीं पर यकीं करो, 

सपने कोई भी नहीं बुनूंगी, 

ना दावा करूगीं कि तुम मेरे हो,

 “एकांकी” बहुत मजबूत है मजबूर नहीं,

कई ख्वाबों के महलों की नींव है,

ताजमहल बने या न बने, 

पर मुमताज बनने का शौक नहीं,

हाँ जैसी हूँ वैसी ही सही,

 कुछ तो हूँ मालूम नहीं,

 किस के दिल की मलिका हूँ मैं...................  

पर तुम्हारे बिन जीना सीख लिया.................

 

नंदिता “एकांकी”

प्रयागराज 


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