सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

माघी पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने लगाई डुबका

प्रयागराज  । तीर्थराज प्रयाग में संगम की रेती पर पूरे एक माह तक चलने वाला कल्पवास अनुष्ठान रविवार को माघी पूर्णिमा के साथ समाप्त हो गया। इस अवसर पर गंगा, जमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में लगभग लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। त्याग और समर्पण की तपस्या का यह अनुष्ठान पौष पूर्णिमा स्नान के साथ इस वर्ष दस जनवरी को प्रारम्भ हुआ था।
 माघी पूर्णिमा का योग रविवार की सुबह ६.४२ से शुरू हो गया जो अपराह्न तीन बजे तक रहा। इसके बावजूद श्रद्धालुओं का स्नान जारी रहा। मेला प्रशासन के अनुसार शाम पांच बजे तक २५ लाख श्रद्धालुओं ने संगम समेत गंगा के विभिन्न घाटों पर स्नान किया। स्नान के बाद लोगों ने घाटों पर पूजन-अर्चन किया और दान भी दिया। माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही संगम तट पर मास पर्यंत चल रहा कल्पवास का अनुष्ठान भी आज समाप्त हो गया। पौष पूर्णिमा से यहां जमे कल्पवासी माघी पूर्णिमा स्नान के बाद अपने घर को प्रस्थान करने लगे हैं। इस वर्ष माघ मेला करीब ढाई हजार बीघे में बसा हुआ है। मेला क्षेत्र में दो हजार से अधिक सामाजिक, धार्मिक, स्वयंसेवी व प्रयागवाल सहित दण्डी स्वामी, आचार्य, खाक चैक के साधु-संतों को भूमि, टेन्ट, फर्नीचर, पेयजल, प्रकाश एवं सेनिटेशन की सुविधाएं दी गई हैं। मुख्य स्नान पर्वों के दिन आने वाले स्नानाथिNयों को शीत से बचाव हेतु अस्थाई रैन-बसेरों की स्थापना की गई है। स्नानाथिNयों की सहूलियत के लिए प्रशासन ने २० स्नान घाट बनवाये हैं। वैसे मेला २३ फरवरी को पड़ने वाले महाशिवरात्रि के पर्व तक जारी रहेगा। 
संगम की रेती पर कायाकल्प हेतु किया जाने वाला तप कल्पवास कहलाता है। यह व्रत पौष पूर्णिमा के साथ ही शुरू हो जाता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि विधान से संकल्प लेते हैं। वे तीर्थ पुरोहितों के आचार्यत्व में मां गंगा, नगर देवता वेणी माधव और पुरखों का स्मरण कर व्रत शुरू करते हैं। महीने भर जमीन पर सोते हैं। पुआल और घास-फूस उनका बिछौना होता है। बदन पर साधारण वस्त्र और हाथों में टीवी के रिमोट की जगह धार्मिक पुस्तकें होती हैं। तीर्थ पुरोहितों के आचार्यत्व में मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव एवं पूर्वजों का स्मरण कर त्याग-तपस्या के २१ नियमों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं। साथ ही मेला क्षेत्र में बने अपने अस्थाई झोपड़ी या तंबू के दरवाजे के पास ये कल्पवासी बालू में तुलसी का बिरवा लगाते हैं और जौ बोते हैं। सुबह स्नान के बाद यहां जल अर्पित करते हैं। सुबह और शाम को यहां दीपक भी जलाते हैं। कल्पवास समाप्त होने के बाद वापस जाते समय वह इसे प्रसाद स्वरूप अपने घर लेकर जाते हैं। कल्पवास करने वाले श्रद्धालु महीने भर रोज तीन बार गंगा स्नान और मात्र एक बार भोजन करते हैं। किसी का दिया हुआ कुछ भी ग्रहण नहीं करते। गंगा की रेती पर मास पर्यन्त कठोर तपस्या के बाद माघी पूर्णिमा का स्नान कर ये कल्पवासी जब अपने घर वापस लौटते हैं तो वहां परिजनों द्वारा इनकी देवताओं की तरह पूजा होती है। मेजा के शशी कान्त पाण्डेय पिछले कई साल से कल्पवास कर रहे हैं। बताते हैं कि कल्पवास से वास्तव में कायाकल्प होता है। सुल्तानपुर से आए सुरेन्द्र तिवारी २० साल से कल्पवास कर रहे हैं। वह कहते हैं कि प्रयाग की तपस्थली अद्भुत है। हम वर्षों से इसकी अनुभूति कर रहे हैं। वर्ष २०१९ में यहां आयोजित कुम्भ के दौरान देश विदेश की कई संस्थाओं ने कल्पवासियों पर शोध भी किया था, जिसमें पता चला कि इस दिनचर्या से उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में काफी वृद्धि हुई। 



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